सुन साहेबा सुन
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सुन साहेबा ! सुन
आया महिना जून
मानसून की तैयारी है
बरखा आने की बारी है
देवगण करे शयन की तैयारी
मंगल कारज रूकने की लाचारी
कबीर जयंती और पर्यावरण दिवस
सब पुकारे आओ आओ ऋतु पावस
झुलसी धरा की पीड़ा अनसही
प्यासे परिंदों की व्यथा अनकही
मिट्टी की सौंधी गंध को आतुर मन
वर्षा बूंदों में चाहे भिगना तन - मन
ऋतु मिलन मास तुम्हार अभिनंदन है
काले मेघों आओ तुम्हारा शत वंदन है
खूब तपाया अबकी गर्मी तुमने
बचने के हर जतन किए हमने
दिन हुए अब तुम्हारे पूरे
जाओ करने दो सपने पूरे
काली घटाओं को छाने दो
बरखा रानी को आने दो
गर्मी अब मत भून
बरखा के तागे बुन
मैंने उसे चुन लिया
तू भी उसे चुन
सुन साहेबा सुन
आया महिना जून
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- डा. देवेन्द्र जोशी
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